" ‘आटे बाटे चने चबा के,कोकलिया के कान कटा के’ , कोमल सी हथेली पुचकारते हुए 'ये बिल्ली का चौका' ,बच्चे का अंगूठा हिलाकर 'ये गैया का खूँटा' , बड़ी से छोटी उंगलिया पकड़ते हुए " ये अम्मा की, ये बाबा की, ये पापा की , ये मम्मी की , ये मेरी ,नोनू की बछिया खो गई ..खो गई .... खो गई ......, (फिर उंगलिया नाज़ुक सी कलाई से ऊपर धीरे धीरे बगल की तरफ जाती), पा गई... पा गई... पा गई .. और फिर एक बड़ी ही निश्छल ठहाकेदार हँसी पूरे घर को अपनी मासूमियत से महका देती है । मैं जब भी अपने घर जाता तो मेरी भतीजी मेरे पास आकर कहती ' चाचा , आटे बाटे करो ना " और मैं हर बार उसकी इस बचकानी चाहत को पूरा कर देता।
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